लफ़्ज़ों में तुझे बयाँ करने चला था
ख़ुद की तक़दीर तेरे साथ देख
गुस्ताख़ी समझ के भूल जा तू
मुझे, लेकिन मेरे लफ़्ज़ों को ना बेच
तेरे ख़याल में डूबा रहा मैं
मरा नहीं, ये जादू नहीं क्या देख
हर्ष की कमी खलती है ज़रूर
पर ग़म के सुकून ने कर दिया ठीक