Saturday, July 28, 2012

आज की महबूबा

आप मुझसे क्यूँ ही बातें करते हैं
जब मेरी बातें कम, खुद की ज़्यादा करते हैं


अकेलेपन, ख़ामोशी से डर नहीं लगता हमको
पर आपकी एकतर्फी ज़ुबान से, हम भागा फिरते हैं 

आपके बारें में बहुत सुना है हमनें
कि आपके हुस्न पर हज़ारों आशिक़ मरते हैं


किस काम के हैं वो आशिक़?
जो आपकी आशिक़ी में खुद को दगा दिया करते हैं


ज़िन्दगी आपके बिना ही जी लिया हमनें
कभी सोचा, क्या आप हमें भी याद किया करते हैं?



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