मंज़िल की फ़िक्र क्यूँ करे तू राही?
जब तक चल रही है तेरी स्याही
ना डर से डगमगा, ना ग़म से डर
जब रास्ता है तेरा, तू चल बेफ़िकर
अगर लोग कहें तुझे अकेला, पागल और सनकी
तू मुस्कुरा, क्यूंकि खौफ़ बोल रही होगी उनकी
बेख़ौफ़, जब ज़िन्दगी तुझे उड़ना सिखलाएगी
दूर से दुनिया कुछ और ही नज़र आएगी
जब तेरी कहानी ख़त्म होने को आएगी
उनकी अधूरी कहानी मुँह ताकते रह जाएगी
कुछ बोलेंगे दोस्त था मेरा, कुछ पागल ठहराएँगे
कुछ अन्दर ही अन्दर खुद को कोसते रह जाएँगे
तू उन्हें देख कर ऊपर बैठा हसता रह जाएगा
तेरी मंज़िल तेरा सफ़र था, ये कुछ को ही समझ में आएगा
जब तक चल रही है तेरी स्याही
ना डर से डगमगा, ना ग़म से डर
जब रास्ता है तेरा, तू चल बेफ़िकर
अगर लोग कहें तुझे अकेला, पागल और सनकी
तू मुस्कुरा, क्यूंकि खौफ़ बोल रही होगी उनकी
बेख़ौफ़, जब ज़िन्दगी तुझे उड़ना सिखलाएगी
दूर से दुनिया कुछ और ही नज़र आएगी
जब तेरी कहानी ख़त्म होने को आएगी
उनकी अधूरी कहानी मुँह ताकते रह जाएगी
कुछ बोलेंगे दोस्त था मेरा, कुछ पागल ठहराएँगे
कुछ अन्दर ही अन्दर खुद को कोसते रह जाएँगे
तू उन्हें देख कर ऊपर बैठा हसता रह जाएगा
तेरी मंज़िल तेरा सफ़र था, ये कुछ को ही समझ में आएगा
3 comments:
"listen to your own self"... दुनिया का तो काम ही है बोलना .... अच्छा या बुरा..!!! :) :)there's positiveness towards leading a practical approach of life.. wch i liked very much !!
such a heart touching poem
Beautifully written.... thanks for sharing
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