हमेशा ऐसा कहाँ होता है
की जो चाहो, वो मिल जाये
ज़िन्दगी के दो सिरे हैं
ख्वाईशें और असलियत
दोनों अलग, दोनों जुदा
हम अक्सर दोनों को मिलाने की
बेपनाह कोशिश करते,
पर जब साथ रहना ही नहीं
तो भला वो क्यूँ सुनें ?
अगर वो न सुने तो हम क्यूँ ?
हम से अहम बनता है
और अहम के हाहाकार से अहंकार
और फिर अहंकार का हाहाकार
फिर, हम कहाँ तुम कहाँ?
सिर्फ मैं ही मैं दिखता है
इस मैं के जंजाल में
आदमी फंसता, बेख़बर
और कोसता फिरता, यहाँ वहाँ
ज़िन्दगी उसकी इतनी भी न सुनती;
उसे तनहा देखकर,
उसका अहम भी उसे धोखा दे कर
भाग निकलता
बचता सिर्फ वो, अकेला।
और मैं, हम की तलाश में
ठोकरें खाता, बेबस और लाचार
अपनी किस्मत से गुफ्तगू करता
और हँसते हुए फिर कहता,
हमेशा ऐसा कहाँ होता है
की जो चाहो, वो मिल जाये
हमेशा, हमेशा.
की जो चाहो, वो मिल जाये
ज़िन्दगी के दो सिरे हैं
ख्वाईशें और असलियत
दोनों अलग, दोनों जुदा
हम अक्सर दोनों को मिलाने की
बेपनाह कोशिश करते,
पर जब साथ रहना ही नहीं
तो भला वो क्यूँ सुनें ?
अगर वो न सुने तो हम क्यूँ ?
हम से अहम बनता है
और अहम के हाहाकार से अहंकार
और फिर अहंकार का हाहाकार
फिर, हम कहाँ तुम कहाँ?
सिर्फ मैं ही मैं दिखता है
इस मैं के जंजाल में
आदमी फंसता, बेख़बर
और कोसता फिरता, यहाँ वहाँ
ज़िन्दगी उसकी इतनी भी न सुनती;
उसे तनहा देखकर,
उसका अहम भी उसे धोखा दे कर
भाग निकलता
बचता सिर्फ वो, अकेला।
और मैं, हम की तलाश में
ठोकरें खाता, बेबस और लाचार
अपनी किस्मत से गुफ्तगू करता
और हँसते हुए फिर कहता,
हमेशा ऐसा कहाँ होता है
की जो चाहो, वो मिल जाये
हमेशा, हमेशा.
2 comments:
nicely written enjoyed reading...:)
WoW Man..
Lovely piece of writing.. Loved It! :) :)
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